मंड्रेला के सरकारी स्कूल में नही है विज्ञान संकाय
Mandrella government school does not have science faculty
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वर्षो से नही साइंस संकाय,कैसे बने डॉक्टर-इंजीनियर
1982 से पहले था भहूउद्देश्य विद्यालय
वर्षो से नही साइंस संकाय,कैसे बने डॉक्टर-इंजीनियर
मण्ड्रेला.कस्बा धीरें धीरें शिक्षा नगरी का रूप ले रहा है।कस्बे में 19 स्कूल निजी तीन सरकारी स्कूल एक मदरसा तथा पांच आगनवाड़ी केन्द्र पर विद्यार्थी शिक्षा ले रहे है। गांवों एवं ढ़ाणियों से हजारों विद्यार्थी पढऩे के लिए मण्ड्रेला आते है।मगर सरकार एवं स्थानीय नेताओं की अपेक्षाओं के कारण कस्बे में संचालित दो बड़े सरकारी स्कूलों लाठ राजकीय सीनियर सैकंडरी स्कूल व श्रीमती बनारसी देवी लाठ राजकीय बालिका उच्च प्राथमिक विद्यालय में उच्च शिक्षा के लिए साइंस संकाय तक नही है।गोरतलब है कि कस्बे की सात निजी स्कूलों में विज्ञान संकाय है।ऐसे में विद्यार्थियों को निजी स्कूलों में एडमिशन लेना पड़ता है।कुछ प्रतिभावान विद्यार्थियों को सरकारी स्कूलों में विज्ञान संकाय नही होने के कारण मजबूरन विज्ञान संकाय से उच्च शिक्षा लेने का सपना छोडकऱ कला या कॉमर्स वर्ग से शिक्षा लेनी पड़ती है।
लगभग 25 हजार की आबादी वाले कस्बे में शिक्षा के लिए सेठ-साहूकारों ने सरकार को भवन निर्माण सहित खूब योगदान दिया।इसी के चलते काफी समय पहले लाठ राजकीय सीनियर सैकंडरी स्कूल में सेठों ने हजारों की लागत से दो लैब बनवाकर दी थी पर सरकार की उदासीनता के कारण लैब का सामान नष्ट हो चूका है।गत दिनों स्कूल का पूर्व छात्र व प्रवासी उद्यमी अनिल रूंगटा के मण्ड्रेला आवगमन पर कस्बे के व्याख्याता विरेन्द्र सिंह निर्वाण के प्रयास से लाखों की लागत से स्कूल भवन के तीसरी मंजील के दो बडे हॉल की लाखों रूपए की मरमत करवाई।
1982 से पहले था भहूउद्देश्य विद्यालय
1982 से पहले उक्त विद्यालय को लाठ शिक्षा पीठ ट्रष्ट की ओर से लाठ भहुउद्देश्य उच्च माध्यमिक विद्यालय के नाम से संचालित स्कूल में कॉमर्स एवं विज्ञान संकाय की कक्षाए लगती थी जिसमें हजारों छात्र शिक्षा ग्रहण करते थे।विद्यालय का पूर्व छात्र सेवानिवृत प्राचार्य सत्यनाराण सैनी ने बताया कि पहले दस स्कूल की दूर-दूर तक अलग पहचान थी।उस जमान में स्कूल में जिले की सबसे बड़ी भौतिक व रासायन विज्ञान की लैब थी,बाहरी छात्र स्कूल के छात्रावास में रहकर अध्ययन करते थे।नौ फरवरी 1982 में पदमश्री चिरंजीलाल जोशी की अगुवाई में ट्रष्ट की ओर से उक्त स्कूल को राज्य सरकार को दान कर दिया।तत्तकालिन मुख्यमंत्री शिवचरण माथूर ने स्कूल प्रागण में हुए समारोह मेंं स्कूल को राज्याधीन कर सभी कर्मचारियों सहित भवन को सरकारी घोषित कर स्कूल में विज्ञान संकाय को हटाकर कला वर्ग शुरू कर दिया।जब से इस ओर सरकार का ध्यान नही गया।जिससे गरीब घरों के बच्चों के डॉक्टर एवं इंजीनिय बनने का सपना अधुरा रह जाता है।
सेठों एवं भामाशाहों ने बनवाया भवन
बालिका स्कूल के भवन का निर्माण महिला शिक्षा के हिमायती सेठ मोतीलाल लाठ ने अपनी पत्नी बनारसीदेवी लाठ के नाम से 1960 में करवाया था तथा कस्बे में लड़कियों शिक्षा की अलख जगाई थी।बाद में राज्य सरकार ने स्कूल को राज्याधीन कर लिया तथा वर्तमान में स्कूल सीनियर तक संचालित है।पर बालिका शिक्षा पर जौर देने वाली सरकार ने इस स्कूल में भी विज्ञान संकाय स्वीकृत नही की है।इसी के चलते अब भामाशाहों का मनोबल भी कमजोर हो गया है।हालांकि कस्के के सेठ एवं साहुकार अब भी स्कूलों में दान करने को तैयार है पर सरकार इस ओर ध्यान तो दे।
खूब है छात्र संख्या
लाठ राजकीय सीनियर सैंकडरी स्कूल एवं राजकीय बालिका सीनियर सैकंडरी स्कूल में छात्र/छात्राओं की सख्या काफी अच्छी है।दोनों स्कूलों में एक हजार के लगभग विद्यार्थी अध्ययनरत है।दोनों स्कूलों का परीक्षा परिणाम भी अच्छा रहता है।दोनों स्कूलों में अगर विज्ञान संकाय खुलती है तो गरीब घरों के बच्चें जो निजी स्कूलों में पढ़ते है वो भी सरकारी स्कूलों से जुडऩे लगेगे।गत पांच वर्ष का दोनों सरकारी स्कूलों का 10 वीं बार्ड परीक्षा परीणाम भी शानदार रहा है।अगर विज्ञान विषय स्वीकृत हो तों सरकारी स्कूल के बच्चें भी विज्ञान विषय में अध्ययन कर अपना भविष्य उज्जवल कर सकते है।
गत पांच साल का दसवी का परीक्षा परीणाम
लाठ राजकीय सीनियर सैंकडरी स्कूल
सत्र छात्र संख्या परीणाम
2015/16 49 73.91 प्रतिशत
2016/17 25 88
2017/18 45 97.77
2018/19 38 89.47
2019/20 55 98.18
श्रीमती बनारसी देवी लाठ राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय
2015/16 34 70.59
2016/17 49 55.10
2017/18 50 94.33
2018/19 52 75
2019/20 56 85.71
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