July 24, 2024

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Tribute meeting on the construction day of Mahatma Jyotiba Phule

Tribute meeting on the construction day of Mahatma Jyotiba Phule

महात्मा ज्योतिबा फूले के निर्माण दिवस पर श्रद्धांजलि सभा

महात्मा ज्योतिबा फूले के निर्माण दिवस पर श्रद्धांजलि सभा

Tribute meeting on the construction day of Mahatma Jyotiba Phule
Tribute meeting on the construction day of Mahatma Jyotiba Phule
Tribute meeting on the construction day of Mahatma Jyotiba Phule

 

महात्मा ज्योतिबा फूले के निर्माण दिवस पर श्रद्धांजलि सभा

झुंझुनूं महात्मा ज्योतिबा फुले राष्ट्रीय संस्थान द्वारा सामाजिक क्रांति के प्रणेता महात्मा ज्योतिबा फुले की 132वीं पुण्यतिथि के मौके पर 28 नवंबर, सोमवार सुबह 11 बजे महात्मा ज्योतिबा फुले अतिथि भवन, फौज का मोहल्ला , बैंक ऑफ बड़ौदा के पीछे, झुंझुनू में श्रद्धांजलि सभा आयोजित की जाएगी।

संस्थान के जिलाध्यक्ष नेकीराम धूपिया ने बताया कि श्रद्धांजलि कार्यक्रम के पश्चात समाज की विभिन्न गतिविधियों व अन्य मुद्दों पर चर्चा की जाएगी। उन्होंने सभा में अधिक से अधिक संख्या में आने की अपील की। सभा में जिले के गणमान्य व्यक्ति महात्मा ज्योतिबा फूले को श्रद्धांजलि देंगे।

जाति-विरोधी आंदोलन के मार्ग निर्माता रहे हैं ज्योतिराव फुले 

हिंदुस्तान में जाति विरोधी आंदोलन के मार्ग निर्माताओं में से एक हैं ज्योतिराव गोविंदराव फुले। अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले के साथ साझेदारी में ज्योतिबा ने अपना पूरा जीवन शूद्र, अतिशूद्र और महिलाओं के सामाजिक शोषण और भेदभाव की मुखालफ़त व बहुतरफा सामाजिक सुधार को समर्पित कर दिया था। साथ ही फुले अपने दौर में मज़दूरों के उभरते संघर्षों से भी जुड़े रहे और नाइयों की हड़ताल व बंबई के मिल कर्मियों के प्रारंभिक संघर्षों से भी उनके ताल्लुक मिलते हैं।

ज्योतिराव गोविंदराव फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को सतारा महाराष्ट्र , में हुआ था. उनका परिवार बेहद गरीब था और जीवन-यापन के लिए बाग़-बगीचों में माली का काम करता था. ज्योतिबा जब मात्र एक वर्ष के थे तभी उनकी माता का निधन हो गया था. ज्योतिबा का लालन – पालन सगुनाबाई नामक एक दाई ने किया।

पिछड़े वर्गों व महिलाओं की शिक्षा, वैज्ञानिक और व्यावहारिक शिक्षा, विधवा पुनः विवाह व लैंगिक शोषण से मुक्ति, धार्मिक संस्कारों का सरलीकरण, मूर्तिपूजन का विरोध इत्यादि उनके कार्यों में से मुख्य थे।उन्होंने विधवाओ और महिला कल्याण के लिए काफी काम किया था। उन्होंने किसानो की हालत सुधारने और उनके कल्याण के भी काफी प्रयास किये थे। स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिये ज्योतिबा और उनकी पत्नी ने मिलकर 1848 में स्कूल खोला जो देश का पहला महिला विद्यालय था। उस दौर में लडकियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नही मिली तो उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई को पढाना शुरू कर दिया और उनको इतना योग्य बना दिया कि वो स्कूल में बच्चो को पढ़ा सके।

ज्योतिबा यह जानते थे कि देश व समाज की वास्तविक उन्नति तब तक नहीं हो सकती, जब तक देश का बच्चा-बच्चा जाति-पांति के बन्धनों से मुक्त नहीं हो पाता, साथ ही देश की नारियां समाज के प्रत्येक क्षेत्र में समान अधिकार नहीं पा लेतीं। उन्होंने तत्कालीन समय में भारतीय नवयुवकों का आवाहन किया कि वे देश, समाज, संस्कृति को सामाजिक बुराइयों तथा अशिक्षा से मुक्त करें और एक स्वस्थ, सुन्दर सुदृढ़ समाज का निर्माण करें।

उनका मानना था कि मनुष्य के लिए समाज सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। इससे अच्छी ईश्वर सेवा कोई नहीं। वे पढ़ने-लिखने को कुलीन लोगों की बपौती नहीं मानते थे। मानव-मानव के बीच का भेद उन्हें असहनीय लगता था।

ज्योतिबा फुले बाल विवाह के खिलाफ थे साथ ही विधवा विवाह के समर्थक भी थे; वे ऐसी महिलाओं से बहुत सहानुभूति रखते थे जो शोषण का शिकार हुई हो या किसी कारणवश परेशान हो इसलिये उन्होंने ऐसी महिलाओं के लिये अपने घर के दरवाजे खुले रखे थे जहाँ उनकी देखभाल हो सके।

दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने ‘सत्यशोधक समाज’ स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे। वे लोकमान्य के प्रशंसकों में थे।उनका एक महत्वपूर्ण विचार

“मनुष्य को आज़ाद होना चाहिए, यही उसकी बुनियादी जरूरत है। जब व्यक्ति आजाद होता है तब उसे अपने मन के भावों और विचारों को स्पष्ट रूप से दूसरों के सामने प्रकट करने का मौका मिलता है। लेकिन जब आजादी नहीं होती तब वह वही महत्वपूर्ण विचार, जनहित में होने के बावजूद दूसरों के सामने प्रकट नहीं कर पाता और समय गुजर जाने के बाद वे सभी लुप्त हो जाते हैं। आजाद होने से मनुष्य अपने सभी मानवी अधिकार प्राप्त कर लेता है और असीम आनंद का अनुभव करता है। सभी मनुष्यों को मनुष्य होने के जो सामान्य अधिकार, इस सृष्टि के नियंत्रक और सर्वसाक्षी परमेश्वर द्वारा दिए गए हैं, उन तमाम मानवी अधिकारों को ब्राह्मण-पंडा-पुरोहित वर्ग ने दबोच कर रखा है। अब ऐसे लोगों से अपने मानवी अधिकार छीन कर लेने में कोई कसर बाकी नहीं रखनी चाहिए।”

-‘गुलामगिरी’ लेख से

 

 

 

 

 

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